प्रकृति
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लोगो के सुख दुःख से परेशां मैं तुमसे चर्चा करने आया हूँ प्रकृति
क्या भला समय अच्छा या बुरा होती हैं ,
समय तो समय है, और समय होती हैं।
क्या कर्म कभी पाप और पुण्य होती हैं ,
कर्म तो कर्म हैं, और कर्म होती हैं।
भाव (भावनाएं – feelings ) कभी क्या मोह प्रेम, छल कपट होती हैं
भाव तो भाव है, और भाव होती है।
फिर क्यों लोग ये बात समझ नहीं पाते हैं
और जीवन के पड़ाव को सुख दुःख बताते हैं।
कहा प्रकृति ने अजय :
क्या मैं दिन और रात में फर्क करती हूँ, क्या दिन को सुख(ख़ुशी )
और रात को दुःख(परेशानियों ) का दर्जा दे पाती हूँ।
मानव जाति की यही एक विडंबना हैं –
वो जीने नहीं नापने आया हैं , खोने और पाने आया हैं ,
तुम्हारे इस अजेय अभिव्यक्ति का मैं स्वयं ही निराकरण हूँ,
मैं सिर्फ प्रकृति हूँ, दिन रात केवल समय चक्र हैं।
क्या भला समय अच्छा या बुरा होती हैं ,
समय तो समय है, और समय होती हैं।
क्या कर्म कभी पाप और पुण्य होती हैं ,
कर्म तो कर्म हैं, और कर्म होती हैं।
भाव (भावनाएं – feelings ) कभी क्या मोह प्रेम, छल कपट होती हैं
भाव तो भाव है, और भाव होती है।
फिर क्यों लोग ये बात समझ नहीं पाते हैं
और जीवन के पड़ाव को सुख दुःख बताते हैं।
कहा प्रकृति ने अजय :
क्या मैं दिन और रात में फर्क करती हूँ, क्या दिन को सुख(ख़ुशी )
और रात को दुःख(परेशानियों ) का दर्जा दे पाती हूँ।
मानव जाति की यही एक विडंबना हैं –
वो जीने नहीं नापने आया हैं , खोने और पाने आया हैं ,
तुम्हारे इस अजेय अभिव्यक्ति का मैं स्वयं ही निराकरण हूँ,
मैं सिर्फ प्रकृति हूँ, दिन रात केवल समय चक्र हैं।