Aam Log Khas Baat
Point Of View
Republic Day पर ‘तंत्र के प्रधान को बतौर आम नागरिक (गण) अजय रात्रे ने लिखा पत्र – रो रहा गण है, हस रहा तंत्र है… कैसा ये गणतंत्र है। हो रहा है ख़ूब वायरल….
73वे गणतंत्र दिवस पर जहां लोगों एक दूसरे को बधाइयाँ दे रहे है वही, भिलाई छत्तीसगढ़ के रहने वाले अजय रात्रे ने प्रधान मंत्री या तंत्र के प्रधान को एक मेल लिखा है और tweet करके प्रधानमंत्री और समस्त देश को अपनी बात साझा किया है।
73वे गणतंत्र दिवस कि शुभकामनाओं सहित उन्होंने लिखा की विश्व की सबसे गरिममयी सविधान होने के बावजूद हम आज भी विकासशील राष्ट्र की श्रृंखला में खड़े है, यह बात या तो हमारे संविधान में या फिर संविधान को संचालित करने वाले तंत्र के प्रधान पर सवाल उठाते है, लोकतांत्रिक राष्ट्र का दर्जा होने के बावजूद अब तक तंत्र के उच्चस्तरीय लोग, गण के अंतिम व्यक्ति तक अपनी ज़िम्मेदारी का निर्वहन सुचारु रूप से नही कर रहे।
मैं किसी पार्टी विशेष के ऊपर प्रत्यारोपण प्रकट न करते हुए लोकतांत्रिक कहे जाने वाले देश के प्रधान सेवक जिन्हें मंत्री कहकर जाना जाता है से ये बात जानने को इछुक हूँ की वो अपनी आगे की मंशा और कार्यनीति तय करने से पहले मेरी बातों को संज्ञान में ले। अजय रात्रे , Dsigno ad agency के फ़ाउंडर होने के साथ साथ सामाजिक चेतना और समाज में ज़रूरी बदलाव और उत्थान के लिए हमेशा से अपनी तत्पारता ज़ाहिर करते आए है, उनके द्वारा उठाए गये अनेको प्रयास सामाजिक उत्थान में अपनी उपस्थिति दर्ज कर चुकी है ।
हमेशा से ही अपने सवालों से लोगों को सोचने के लिए विवश कर देने वाले अजय रात्रे ने प्रधान मंत्री जी के समक्ष की सवालों की छोटी सी श्रृंखला रखी जो निश्चित ही हमेशा की तरह विचारणीय थे जो इस प्रकार है ….
- अगर भारत एक गणतांत्रिक देश है तो ऐसे में गण ही क्यों आम है और तंत्र ख़ास?
- क्या आम नागरिक को ख़ास सुविधाओं का अधिकार नही?
और भी ऐसे सवाल है जो मन को त्वरित करते है - विश्व की सबसे बड़ी नियमावली, सबसे बड़े सविधान वाले देश की व्यवस्था आज भी डगमगायी हुई है? इसे वापस से स्तंभित करने का क्या कोई प्रारूप तैयार है ?
- प्रश्न ये नही की कौन बेहतर शासक है , बल्कि ये है की कौन सा सेवक तंत्र का ज़िम्मा उठायगा?
- क्या कोई प्रधान सेवक आयगा, जो ग़ुलाम देश से स्वराज प्राप्त देश के गणतंत्र होने पे उठने वाले सवालों का बेहतर जवाब हों?
- मौलिक अधिकारों की जनहित वाली नीतियों को पन्नो से उठाकर प्रत्यक्ष में बदल देने वाली कोई पहल है क्या ?
- फिर से यह भारत, देश की जगह, प्रांत और राज्य में विभाजित है लगने लगा है, एक राष्ट्र केवल शब्द मात्र सा लगने लगा है… इस बात पे क्या कोई प्रकाश डाला जा सकता है ?
- गणतंत्र की व्यवस्था को बनाए रखने भारत के संचालन करने वाले विभाग की चयन प्रक्रिया में बदलाव की ज़रूरत की आशंका है क्या?उन्होंने पत्र या मेल के माध्यम से अपनी भावुकता प्रकट करते हुए लिखा की ‘आज गण रो रहा है- और तंत्र हँस रहा है। ये स्थिथ भारत के भाग्य और भविष्य को चिंता में डाल सकती है। कही कोई परेशान भारतीय आम नागरिक, ब्रिटिश शासन को ही सुशासन की संज्ञा ना दे बैठे, इससे पहले की गण तड़प के मर जाए और तंत्र का अस्तित्व ही ख़तरे में हो, पुनः गणतंत्र की स्थापना के लिए निवेदन करते हुए यह तंत्र के समक्ष गण के मन की अभिव्यक्ति है l कृपया इसका अजेय निराकरण करे।
~ अजय रात्रे