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December 17, 2024 8:28 am


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माई कोठी के धान ला हेर हेरा: अन्न दान की परंपरा Chhattisgarh का लोक पर्व ‘छेरछेरा पुन्नी’

हर त्योहार या पुरानी परंपरा जिन्हें आज हम अधेड़ या फ़ालतू के रिवाज़ कहकर उन तौर तरीक़ों से रुसवा कर गये है… हमें व्यवहारिकता ज्ञान, सामाजिक चेतना और व्यवस्था के प्रति ज़िम्मेदार बनाता है या कह लो कोई न कोई ज्ञान ज़रूर देता है जो भविष्य में हमारे विपरीत परिस्थितियों के लिए तैयार करता है, ऐसे ही एक पर्व है छेर छेरासीख

1. माँगना – वैसे तो माँगना समाज के मध्य सबसे vast condition में किया जाने वाला काम और परिस्थिति है। किंतु यह रिवाज़ सक्षम वर्ग द्वारा भी किया जाता है जो यह संदेश देता है की ज़रूरत के समय माँगना भी पड़े तो हमारा अहम और अहंकार बीच में न आए ।

2. दान करना – दान तो वैसे भी पुण्य का काम माना गया है, निश्चित ही अच्छे संस्कार की संज्ञा को बनाए रखने की ओर प्रेरित करता है ।बालक उमर से ही इन संस्करो में ढालने की परम्परा का नाम है छेर छेरा पुंनी।

भारतीय त्योहारों में किसी भी त्योहार को आडम्बर से हटकर उनसे मिलने वाली सिख को जानना हो तो comment करे या हमें लिखे… आज छेरछेरा (cherchera) पर्व है। छेरछेरा पर्व छत्तीसगढ़ में बड़े ही धूमधाम और हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है। इसे छेरछेरा पुन्नी (chher chhera punni) या छेरछेरा तिहार (cherchera festival) भी कहते हैं।

इसे दान करने का पर्व माना जाता है। इस दिन छत्तीसगढ़ में युवक-युवती और बच्चे, सभी छेरछेरा (अनाज) मांगने घर-घर जाते हैं।छत्तीसगढ़ में छेरछेरा पुन्नी (chher chhera punni) का अलग ही महत्व है। वर्षों से मनाया जाने वाला ये पारंपरिक लोक पर्व साल के शुरुआत में मनाया जाता है। इस दिन रुपये पैसे नहीं बल्कि अन्न का दान करते हैं। इस कारण मनाया जाता है छेरछेरा।

धान का कटोरा कहलाने वाला भारत का एक मात्र प्रदेश छत्तीसगढ़ एक कृषि प्रधान प्रदेश है। यहां पर ज्यादातर किसान वर्ग के लोग रहते हैं। कृषि ही उनके जीवकोपार्जन का मुख्य साधन होता है। यही वजह है कि कृषि आधारित जीवकोपार्जन और जीवन शैली ही अन्न दान करने का पर्व मनाने की प्रेरणा देती है। अपने धन की पवित्रता के लिए छेरछेरा तिहार मनाया जाता है। क्योंकि जनमानस में ये अवधारणा है कि दान करने से धन की शुद्धि होती है। माई कोठी के धान ला हेर हेरा… छेरछेरा पर बच्चे गली-मोहल्लों, घरों में जाकर छेरछेरा (दान) मांगते हैं। दान लेते समय बच्चे ‘छेर छेरा… माई कोठी के धान ला हेर हेरा’ कहते हैं और जब तक आप अन्न दान नहीं देंगे तब तक वे कहते रहेंगे- ‘अरन बरन कोदो करन, जब्भे देबे तब्भे टरन’। इसका मतलब ये होता है कि बच्चे आपसे कह रहे हैं, मां दान दो, जब तक दान नहीं दोगे तब तक हम नहीं जाएंगे।
जनश्रुति के अनुसार, एक समय धरती पर घोर अकाल पड़ा। इससे इंसान के साथ जीव-जंतुओं में भी हाहाकार मच गया। तब आदीशक्ति देवी शाकंभरी को पुकारा गया। जिसके बाद देवी प्रकट हुईं और फल, फूल, अनाज का भंडार दे दिया। जिससे सभी की तकलिफें दूर हो गई। इसके बाद से ही छेरछेरा मनाए जाने की बात कही जाती है।दान की महान संस्कृति का परिचायक ‘छेरछेरा’
जो भिक्षा मांगता है वह ब्राह्मण कहलाता है और जो भिक्षा देता है उसे देवी कहा जाता है। जैसे मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव ने माता अन्नपूर्णा से भिक्षा मांगी थी। जनश्रुतियों के अनुसार ऐसे ही छेरछेरा के दिन मांगने वाला याचक यानी ब्राह्मण होता है और देने वाले को शाकंभरी देवी का रूप माना जाता है।